भगत सिंह आज होते तो किसानों के साथ होते, भाजपा समर्थक उन्हें देशद्रोही मानता?
लाहौर हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने कहा था कि- 'क्रांति संसार का नियम है। वह मानवीय प्रगति का रहस्य है। लेकिन उनमें रक्तरंजित संघर्ष बिल्कुल लाजिमी नहीं है और न उसमें व्यक्तियों के खिलाफ हिंसा की कोई जगह है। क्रांति बम और पिस्तौल का सम्प्रदाय नहीं है'
भगत सिंह की इन बातों को अब वर्तमान में रखकर देखिए। केंद्र की मोदी सरकार ने तीन नए कृषि कानून पास किए जिसके विरोध में किसानों ने दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर धरना देना शुरु कर दिया। चार महीने बीत गए लेकिन उनकी मांगो पर किसी तरह का अमल नहीं किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में किसानों की मौत हो गई। भाजपा के तमाम नेता और मंत्री उनकी शहादत को व्यर्थ मानते हैं, उन्हें किसान मानने से भी इंकार करने से कुुछ गुरेज नहीं किया।
आज की परिस्थिति में भगत सिंह को रखकर देखिए। वह होते तो किसके समर्थन में खड़े होते? किसान या सरकार? स्वाभाविक सी बात है कि वह किसानों के हित में ही खड़े होते। वह सरकार से कहते कि जिसके लिए आपने कानून बनाया अगर उसे ही पसंद नहीं तो फिर क्यों? आप क्यों नहीं किसानों से पूछकर उनके हिसाब से कानून बनाते? आप खेती का उद्धार करने के लिए क्यों निजीकरण को ही बेहतर विकल्प मान बैठे हैं?
जब वह ये सवाल सरकार से पूछ रहे होते तो भाजपा के समर्थक क्या उनके समर्थन में खड़े होते! निश्चित तौर पर नहीं खड़े होते. उन्हें देशभक्त के बजाय देशद्रोही साबित कर देते। ये बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि शहीद दिवस के मौके पर सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर तमाम प्रोग्राम किए जा रहे हैं। भगत सिंह की बातों को लोगों के दिमाग में डालने की कोशिश की जा रही है। लोगों को बताया जा रहा है कि बिना हिंसा के भी अपने निश्चित लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
ऐसे में सरकार की भक्ति में सराबोर एक व्यक्ति भगत सिंह को भी शक की नजर से देखने लगता है। उनकी भूमिका पर सवाल खड़े करने लगता है लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाता क्योंकि भगत सिंह के समर्थन में एक बड़ा जनादेश खड़ा है। लेकिन उसके मन के भीतर जो नफरत किसानों के प्रति है वही भगत सिंह के खिलाफ भी भरती चली जाती है। मानवीय सोच कुछ ऐसे ही काम करती है, वह एक ही पक्ष के दो लोगों को एक साथ बढ़िया नहीं मान सकता।
यकीन मानिए भगत सिंह आज होते तो देशद्रोही होते, क्योंकि वह बेरोजगारी, शोषण, कुपोषण, असमानता, नफरत और अन्याय के खिलाफ बोलते, वे उन नेताओं से पूछते कि सवाल पूछना देशद्रोह क्यों है, समानता की बात करने वाला देशविरोधी कैसे हो सकता है, वे सरकारी नुमाइंदो से राष्ट्रवाद और देशभक्ति के मायनों पर सवाल पूछते। यकीन मानिए वर्तमान सत्ता ही उन्हें फांसी की सजा सुना चुकी होती क्योंकि भगत सिंह मनुष्य मुक्ति और महान परिवर्तन की बात करते।
यह भी पढ़ें - संस्कृति और सेक्स के नाम पर इतनी गलतफहमियां! समाज ही रेपिस्ट तैयार कर रहा?
Comments